जाने अपने घर से कैसे निकलते हैं लोग,
हर कदम पर धोखा है, फ़िर भी चलते हैं
लोग,
जहाँ मरने में भी मजा नहीं, वहाँ जीते हैं लोग,
अपना भरा जाम छोड कर, किसी और की दी- जाने कैसे पीते हैं लोग,
अपनी
कीमत बढा कर, खुद की आबरू खोते हैं लोग,
अपनॊ को रातॊं में जगा कर, जाने कैसे
सोते हैं लोग,
घर के बाहर घर नहीं, फ़िर भी जाने को मचलते हैं लोग,
बाहर जा कर, वापस आने को तरसते हैं लोग,
जाने अपने घर से कैसे निकलते हैं लोग.
-विजय वडनेरे
सिंगापुर
3 comments:
बहुत बढिया है, विजय भाई.
जहाँ मरने में भी मजा नहीं, वहाँ जीते हैं लोग,..
कैसी विडंबना है, मगर है. आपको और आपके ब्लाग के लिये ढेरों शुभकामनाऎं...
समीर लाल
सिंगापुर का पड़ाव आपके लिए सुखद और आरामदायक साबित हो. अच्छे दोस्त मिलें, अच्छी बचत करें. हमारी असीम शुभकामनाएँ!
जाने क्यों लोग बोर करते हैं
आप जैसा बड़िया क्यों नही लिखते हैं|
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