Sunday, March 26, 2006

सिंगापुर प्रथम दृष्टि में

"नये आफ़िस" में अपने पैर जमाने और "आशियाना ढुंढने" (यह दास्तां बाद में) के चक्कर से कुछ फ़ुर्सत मिली तो सोचा कि जो कुछ हमें थोडे से समय में महसूस हुआ है वो आप लोगों के साथ बाँटना चाहिये.

निवासी: सिंगापुर में स्थायी रहने वालों में ज्यादातर प्रतिशत तो चायनिज लोगों का है, फ़िर मलय (मलेशिया से), और फ़िर तमिल (भारत और श्रीलंका से), बांग्लादेशी और पाकिस्तानी तो जैसे नमक है-स्वादानुसार, और बाकी इधर उधर (जापान, बर्मा, फ़िलिस्तीन इत्यादि) के.

हाँ, आने जाने (घुमन्तु) वाले तो हर जगह के मिल जायेंगे.

भाषा: चायनीज, मलय, तमिल, फ़िलिपाईन इत्यादि. हिन्दी और मराठी भी यदा कदा सुनने को मिलती है.

व्यवहार: यहाँ के लोग अधिकतर शांत और अपने काम से काम रखने वाले हैं, नियमों का पालन करने वाले होते हैं, मदद करने के लिये तो तैयार रहते हैं, हाँ अगर आप उनकी अंग्रेजी समझ सकें तो. वैसे उनकी अंग्रेजी और चायनीज में मुझे तो कोई फ़र्क नहीं लगा (दोनो ही अपने सर के उपर से जाती हैं). वाहन चालक - पैदल और सायकिल चालकों को प्राथमिकता देते हैं -कम से कम मुख्य सडकों को छोड दिया जाये तो. सडकें तो है ही काफ़ी साफ़ सुथरी, सडकों के किनारे बने हुये रास्ते (पैदल और सायकिल चालकों के लिये) भी काफ़ी अच्छे होते हैं, सायकिल और स्केटिंग करने वालों के लिये "कम्पेटिबल". स्पीडब्रेकर तो न के बराबर. सारे ट्रेफ़िक सिग्नल चालू हालत में ;) जगह जगह रास्ता पार करने के लिये "फ़ुटब्रिज" (पता नहीं उन्हे यहाँ क्या कहते हैं, मैने ये नाम दे दिया). सडक पर कोई पैचवर्क दिखा हो याद नहीं, ना ही यहाँ कहीं बिजली तारों का बोझ लिये खम्बे दिखे. ना ही कोई लेम्प पोस्ट रात को बन्द दिखा और ना ही कोई दिन के वक्त अनावश्यक रुप से चालू दिखा.

यहाँ की जो सबसे अच्छी बात लगी वो है कि यातायात के साधन. इन्हे "सुगम साधन" कहना भी ठीक ही रहेगा. "इतने" और इतने सुविधाजनक हैं कि व्यक्तिगत रुप से कुछ साधन लेने कि परोक्ष आवश्यकता तो नहीं दिखती. मगर फ़िर भी, यहाँ सडकों पर मर्सिडिज, टोयोटा, निस्सान आदि बहुतायत से दिखती हैं. मुख्य जन परिवहन साधनों में है - बस, एम.आर.टी (मेट्रो), एल.आर.टी. और टैक्सी. यहाँ के गर्म और उमस से भरे वातावरण को देखते हुए लगभग सभी साधन वातानुकूलित होते हैं.

बस: लगभग हर जगह से हर जगह के लिये बस है, बस जरुरत है तो ये पता होने की कि कहाँ से मिलेगी. बिना कण्डक्टर की बस. आगे से चढिये और पीछे से उतरना होता है. हाँ कभी कभी अगर कोई सवारी नहीं चढ रही है तो आगे से भी उतर सकते हैं, ड्राईवर मना नहीं करेगा. :) . अधिकतर बसों में टिकीट लेने की जरुरत हटा दी गई है. नहीं यार, फ़ोकट नहीं है, टिकीट है मगर तरीका अलग है. यहाँ की सरकार आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल बखुबी जानती है. हर बस में दोनों दरवाजों के निकट कार्ड रीडर लगे होते हैं. लोग बस में प्रवेश करते हैं, अपना कार्ड (ये कहाँ मिलता है थोडी देर में बताता हूँ) कार्डरीडर पर रखते है, और उतरते समय फ़िर से वही क्रिया, कार्ड में से अपनेआप निर्धारित किराया कट जाता है. चिल्लर वगैरह का कोई झंझट नहीं.

एम.आर.टी. (मास रेपिड ट्रांसिट याने कि मेट्रो) : मुख्य स्थानों से यात्रा करने के लिये त्वरित साधन. काफ़ी तीव्रगति की होती है. और यहाँ भी टिकीट नही वही कार्ड. प्लेटफ़ार्म पर जाने के ही पहले, स्वचालित दरवाजों पर कार्ड दिखाईये, दरवाजा खुलेगा, फ़िर जहाँ उतरे हैं वहाँ से बाहर आने के लिये फ़िर कार्ड दिखाईये, किराया अपने आप केल्क्युलेट होकर कटेगा.

कार्ड - इलेक्ट्रनिक चिप वाला होता है, मोबाईल की सिमकार्ड की तरह. पहले पैसा भरो (रिचार्ज करो) फ़िर इस्तेमाल करो, जब बैलेंस खत्म होने लगे तो किसी निर्धारित स्वचालित मशीन (ए.टी.एम. की तरह की) से रिचार्ज करो या स्टेशन जा कर टिकीट खिडकी से ले लो. है ना आसान?

एल.आर.टी. (लाईट रेपिड ट्रांसिट याने कि ??): इसके बारे में कुछ ज्यादा नही पता क्योंकि अभी तक मौका नहीं मिला इससे यात्रा करने का. इतना ही जानता हूँ कि ये भी ट्रेन का ही रुप है मगर ये हवा में चलती है, याने कि, इनकी पटरियाँ ऊँचे से पुल-टाईप पर होती हैं, और ये जनता के सर के उपर से गुजरती है.

टैक्सी: इलेक्ट्रानिक मीटर वाली, क्रेडिट कार्डरीडर से युक्त, और वातानुकूलित. पहले तीनों साधनों से थोडी महंगी. ठीक भी तो है, कार में बैठने का और जल्दी पहुँचने का भी तो मजा मिलता है.

पब्लिक फ़ोन: फ़ोन के मामले में नये आने वालों को (खासकर के भारतीयों को) थोडा समय लगता है इस बात को पचाने में कि यहाँ कोई भी एस.टी.डी./पी.सी.ओ. नहीं होते. यहां जगह जगह पर पेफ़ोन्स (काईनबाक्स) लगे होते हैं, वो भी अधिकतर कार्ड से उपयोग में आने वाले. वैसे १०सेंट से चलने वाले भी बहुत मिलते हैं. ये फ़ोन कार्ड अलग तरह के होते हैं, और (अधिकतर) किसी भी स्टोर से मिल जाते हैं. लोकल और बाह्यदेश (ओवरसीज) काल्स के लिये अलग अलग फ़ोन कार्ड लेना होते हैं. ओवरसीज काल्स बिना फ़ोनकार्ड के नहीं लगा सकते. हम भारतीय जिनके की प्रियजन चैन्नै या हैदराबाद या फ़िर बंगलौर में नही रहते (जैसे कि हम!) वो यही गम मनाते रहते हैं कि "क्यों नहीं रहते?" कारण कि कई फ़ोनकार्ड इन शहरों में ज्यादा टाक टाईम देते हैं (पता नहीं क्यूँ). सामान्यतः $8 में 60मिनिट तक टाकटाईम मिलता है, वहीं उपरोक्त "प्रिविलेज्ड" शहरों में उतने ही पैसों में 100 या 120 मिनिट तक पा सकते हैं.

फ़िर एक और बात जो यहाँ अलग लगी वो है यहाँ की कुछ वेबसाईट्स जहाँ पर आप पूरी जानकारी पा सकते हैं. जैसे:

१. परिवहन : बस, मेट्रो के संपूर्ण रास्ते की और किराये की जानकारी.
२. नक्शा : संपूर्ण सिंगापुर के नक्शे. मय सारी इमारतों और सारे मेट्रो / बस स्टाप के साथ.
(उपरोक्त दोनों की सहायता से आप अपनी यात्रा का समय और व्यय तक निकाल सकते हैं - बशर्ते आपको पता हो कि जाना कहाँ है)
३. मानव संसाधन: सिंगापुर में आने के लिये, काम करने के लिये वीजा/ वर्कपरमिट इत्यादि की जानकारी के लिये.

आज के लिये इतना ही, अगली बार सिंगापुर का कुछ और रूप ले कर आपसे मुखातिब होंगे.

2 comments:

Jitendra Chaudhary said...

एकदम सटीक विवरण दिए जा रहे हो मिंयां। एक काम और करो, अपने ब्लॉग का चौखटा सिंगापुरी कर दो, अच्छा दिखेगा। यहाँ जाओ http://aavaran.blogspot.com/
और चाइना रैड वाला आवरण अपनाओ। कोई परेशानी आए तो देबू दा हैं ना। और लिटिल इन्डिया गये कि नही अभी?
अगले अंक का बेसब्री से इन्तजार रहेगा।

RC Mishra said...

बहुत अच्छा विवरण है।
LTR का उपयोग मैंने फ़्रान्स मे किया था। ४ तस्वीरें भी खींची हैं।
देखने के लिये आप यहां पर मेरे tags मे से LTR ढूंढ लीजिये या पूरी लियान विजिट/फ़्रान्स यात्रा देख लीजिये ।