Saturday, March 11, 2006

यह काम नहीं आसां २

इससे पहले की दास्तां आप यहाँ पहले ही पढ चुके होंगे, नहीं पढी तो कोई बात नहीं, पहले उसे पढ लीजिए.

तो जी फ़िर हुआ यह कि धीरे धीरे अपनी अप्लिकेशन उसके अंतिम पडाव तक पहुँच ही गई, और सारे खाते बन्द होते होते हमारी कम्पनी में हमारा आखिरी दिन भी आ गया.

मगर एक बात बडी अजीब लगी. जब इतने सारे महकमों से हमारी अर्जी को गुजरना ही था, फ़िर भी हमारे आखिरी दिन तक हमारे कुछ कागजात हमें नही मिले.

पुछने पर पता पडा कि अभी १-२ हफ़्ते और लगेंगे. अरे भई ऎसा क्युं? इसका जवाब नही था किसी के भी पास. चलो जाने दो. कही ना कही तो समझौता करना ही पडता है.

खैर, ६ मार्च २००६, हमारा आखिरी दिन हमारी कम्पनी में, बंगलौर में, कर्नाटक में, यहाँ तक की भारत में भी.

काम बहुत से थे, पर राम-राम करते सब टाईम पर होते गये.

एक नया देश, नई जगह, नई कम्पनी, नये लोग, नया वातावरण हमारा इंतजार कर रहा था. दिल में कई सारी आशंकाएं थी, अपनों से दूर जाने का गम था, पर जैसा पहले भी कहा था- "जब ओखली में सर दिया तो मूसल से क्या डरना"

और अंततः हम उड ही चले.

सोये थे अपने भारत के आसमान में कहीं, और जब जागे तो सिंगापूर की धरती पर!!

(अगली कडी)

1 comment:

Jitendra Chaudhary said...

हमारा विमान सिंगापुर एयरपोर्ट पर उतरने वाला है, जिन यात्रियों ने अपने अपने झोले पड़ोसी की सीट के ऊपर रखे हों, वो अब हटा लें, क्योंकि झोला अब तक नही गिरा, तो अब क्या गिरेगा।और हां जो लोग विमान मे ब्लॉग लिख रहे हो, वो अपना बोरिया बिस्तर लपेट लें, बाकी का ब्लॉग कम्पनी के कम्प्यूटर पर लिखा जाए।

वैलकम टू सिंगापुर।