बाहर निकला तो भीड़ में मेरी आँखें कुछ ढुँढ रही थीं। जल्द ही मुझे वो दिख गया। मेरा नाम। हाँ वो मेरा ही नाम था। एक उँचे से गोरे से युवक के हाथ में था, एक कार्ड्बोर्ड पर बडे बडे अक्षरों में छपा हुआ था। जैसा मैने सोचा था, वो युवक वैसा तो नहीं था। ये तो बडे सलीके से कपडे पहना हुआ था। बाल अच्छे से जमे हुये थे। दिखने में भला सा पढा लिखा भी दिख रहा था। खैर मैं अपना सामान लिये हुये बढ चला उसकी तरफ़।
मैने उसके पास पहुँचते ही उसे हैलो कहा। उसने भी मुझे अपनी ओर आते हुये देख लिया था। उसने मेरा मुस्कुरा कर स्वागत किया। फ़िर उसने पुछा कि सारा सामान ले आये? कुछ बचा तो नहीं? चलें? मैने कहा – हाँ चल सकते हैं। वह एक तरफ़ चल पड़ा, मैं भी उसके पीछे पीछे बढ़ चला।
तभी मुझे कुछ याद आया। मैने उसे रुकने के लिये कहा। और आसपास नज़र दौड़ाई। एक कोने में फ़ोनबूथ भी दिख गया। थोड़ी बहुत चिल्लर तो मैने पहले ही इस काम के लिये करवा ली थी। सो एक फ़ोन लगाया और अपने पहुँचने की सूचना दी और कहा कि बस यहाँ से निकल ही रहे हैं।
तब तक उसने लिफ़्ट रोक दी थी। अपने सामान के साथ मैं भी लिफ़्ट में दाखिल हो गया। मैने उससे पुछा कितना समय लगेगा हमें पहुँचने में? उसने जवाब दिया ट्राफ़िक पर अवलम्बित है। कम हुआ तो दो से ढाई घंटे में पहुँच जायेंगे, वरना तीन से साढे तीन घंटे भी लग सकते हैं।
लिफ़्ट रुकी, बाहर आये, वह एक बड़ी सी मशीन के आगे रुका, और पार्किंग का पैसा भरा। जहाँ हम रुके थे, वहाँ से बाहर गाडियाँ पार्क की हुई दिख रही थी। शायद हम पार्किंग पर ही थे. एक दरवाज़ा था, वह आगे आगे चला, मैं सामान के साथ उसके पीछे पीछे दरवाज़े से बाहर निकला। बाहर निकलते ही अचानक ठीठक गया। वापस दरवाज़े से अन्दर जाने का मन हो गया। दरवाज़े के अन्दर तो मैं बड़ा सहज़ महसूस कर रहा था, ये अचानक क्या हुआ? कुछ तो था, तो अचानक मेरे अन्दर तक चला गया, और मुझे रुकने पर मजबूर कर दिया। बाहर हवा जरूर चल रही थी। पर इतनी तो तेज़ नहीं थी। तभी वो वापस आया और सामान उठाने में मेरी मदद करने लगा। सामान ले कर वो आगे आगे चला और मैं उसके पीछे पीछे उसकी कार की तरफ़ बढा। दरवाजे़ से कार तक की दूरी ५० मीटर से ज्यादा नहीं होगी, पर तब तक ही समझ में आ गया की ये तो बहुत ज्यादा है – या यूँ कहना ज्यादा ठीक रहेगा कि ये तो बहुत "कम" है। कार के अन्दर जाते ही जान में जान आई, और कुछ कुछ सामान्य सा लगने लगा। खैर, तो बढ चले हम अपनी मंजिल की ओर.
अब इसके पहले और बाद में क्या क्या हुआ वो भी बताउँगा और जरुर बताउँगा, फ़िलहाल अभी तक जो भी पढा उसके बारे में आपके क्या ख्याल बने आप जरुर बताईयेगा। देखें तो सही कि हमारी बात आप तक पहुँची भी कि नहीं.
3 comments:
प्यारे ये बताओ कि अब हो कहाँ?
वो उस कैदखाने से मुक्ति मिली की नही? कि अभी भी वहीं पर टनटना रहे हो?
कैदखाना तो वही है, हाँ थोडे समय के लिये बदली हुई है. तो फ़िलहाल टनटना तो नहीं रहे..हाँ कुड़्कुड़ा जरुर रहे हैं. जगह सही पर समय गलत.
ये ३० से ३ का चक्कर है. अभी तो उँगलियाँ चलते लैपटाप की बैटरी पर रख कर गरम कर के टाईप कर रहे हैं. ही ही ही.
या तो बेटा तुम कनाडे की बर्फ़वाली जगह पर टहल गए हो या फिर बेहद गर्म सऊदी अरब के गर्म रेगिस्तानी शहर मे। तभी एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही एक मिनट के लिए हक्के बक्के रह गए। तभी तो कहते है नाजुक सिंगापुरियों को इधर उधर मटरगश्ती नही करनी चाहिए। अब आए भी अकेले हो, तो बेटा अब झेलो, सर्दी/गर्मी अजनबी देश में।
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